Tuesday, 28 June 2022

पूर्व मुख्यमंत्री  श्री देवेंद्र फर्नवादीस जी वर्तमान में अत्यंत शुभ ग्रहों के प्रभाव में है| नेट पर उनकी जन्म लग्न तुला बताई गई है, यदि उनकी दी गई यह कुंडली सही है तो ग्रहों के शुभ प्रभाव में वे  मुख्यमंत्री के लिए सबसे आगे नजर आ रहे हैं| गोचर में चल रहे कुछ ग्रहों एवं जन्म कालीन कुंडली में कई प्रभावशाली योग उनकी कुंडली में उन्हें महाराष्ट्र ही नहीं अपितु देश के एक बहुत बड़े पद के लिए भी आगे जाकर  उन्हें सफल बना सकते हैं| वर्तमान में उनका महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनना उनकी कुंडली में कई ग्रहों के चलते सफलता के लिए स्पष्ट संकेत दे रहा है |

Wednesday, 28 September 2016

रेवासा पीठाधीश्वर राघवाचार्य जी महाराज, साथ में ज्योतिर्विद महावीर कुमार सोनी, हिंदी समाचार पत्र " गठजोड़ " के लोकार्पण के अवसर पर Revasa Peethadheeshvar Rahgvaachary ji and Jyotirvid Mahavir kumar Soni with Gathjod News Paper

जयपुर में दिनांक २३ सितम्बर से प्रारम्भ हुए एवं दिनांक २६ सितम्बर तक चलने वाले "हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेले" में हिंदी समाचार पत्र "गठजोड़" परिवार की तरफ से भी स्टाल लगाई गई. गठजोड़ द्वारा विभिन्न संगठनों का संयुक्त साथ लेकर चलाए जा रहे विभिन्न सामाजिक कार्यक्रमों को गति प्रदान करने, गठजोड़ के देश, राज्य एवं जनहितों को गति देने सम्बन्धी कार्यों की जानकारी देना इस स्टाल का प्रमुख उद्देश्य था. इस दौरान एक अवसर पर परम पूज्य रेवासा पीठाधीश्वर राघवाचार्य जी महाराज द्वारा गठजोड़ के नवीन विशेष अंक तथा पोस्टर का लोकार्पण भी किया गया. स्टाल पर सचिवालय कर्मचारी संघ के पूर्व अध्यक्ष लोकप्रियता कर्मचारी नेता मेघराज पवार, श्री गोविन्द जी पारीक, प्रसिद्ध ज्योतिर्विद राकेश सोनी, पंडित विशाल दयानंद शास्त्री सहित विभिन्न गण मान्य लोगों के साथ कई सामाजिक गतिविधियों एवं कार्यक्रमों को गति भी प्रदान की गई, जिसके कार्यक्रमों की कुछ झलकियों के साथ गठजोड़ के नवीन विशेष अंक की झलकियाँ -




Tuesday, 27 September 2016

विश्व की सबसे बड़ी "श्रीदुर्गासप्तशती", कई दृष्टियों से विशिष्ट एवं अनूठे इस धार्मिक ग्रन्थ की प्रति "हिन्दू अध्यात्मिक एवं सेवा मेले" में लगाई गई स्टाल पर ज्योतिर्विद महावीर कुमार सोनी एवं आचार्य घनश्याम शर्मा को भेंट की गई। इस धार्मिक ग्रन्थ का विमोचन जनवरी माह में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा किया गया था।

जयपुर में आयोजित हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा मेले में हिंदी समाचार पत्र "गठजोड़" की ओर से भी स्टाल लगाई गई। मेले के अंतिम दिन इस स्टाल पर एक भव्य कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसके तहत श्री दुर्गा सप्तशती के रूप में प्रकाशित भव्य धार्मिक ग्रन्थ की प्रति यहाँ भेंट की गई। ग्रन्थ के प्रकाशक डॉ. संदीप जोशी ने आचार्य घनश्याम शर्मा एवं ज्योतिर्विद् महावीर कुमार सोनी को इसकी प्रति भेंट की। 30 किलो वजन और 816 पृष्ठ का यह ग्रन्थ तीन भाषाओं में है, इस ग्रन्थ में प्रत्येक श्लोक को दुर्लभ चित्रों एवं व्याख्या से समझाया गया है। ग्रन्थ के भेंटकर्ता राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ संदीप जोशी ने गठजोड़ को बताया कि कड़ी मेहनत से इसे तैयार करने में 5 साल लगे हैं, संस्कृत, हिंदी एवं अंग्रेजी तीन भाषाओं में इसे तैयार किया गया है, इसमें विभिन्न प्राचीन चित्रकारों, कलाकारों, पुरातत्वविदो, संग्रहालयों, मठो, मंदिरों, राजपरिवारों तथा विदेशी व्यक्तियों और संग्रहालयों में सुरक्षित दुर्लभ एवं प्राचीनतम 575 चित्रों के माध्यम से जीवन्त प्रस्तुतीकरण किया गया है। इस भव्य ग्रन्थ का विमोचन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 21 जनवरी 2016 को उनके सरकारी आवास पर किया गया था। इंटरनेशनल सेंटर फॉर ज्योतिष, वास्तु, स्पिरिचुअल एन्ड कल्चरल एक्टिविटीज ट्रस्ट के बैनर तले ज्योतिष एवं वास्तु विद्या पर आधारित कार्यक्रमों को संयुक्त रूप से गति दे चुके ज्योतिर्विद् महावीर कुमार सोनी एवं आचार्य घनश्याम शर्मा को संयुक्त रूप से ही आयोजित कार्यक्रम में इस प्रति भेंट कार्यक्रम को लेखक द्वारा सम्पन्न करवाया गया है। यह पुस्तक दो तरह से है जिसमें साइज़ का प्रमुख अंतर होने से इस जैसी दूसरी पुस्तक का वजन 6 किलो है। 6 किलो वाले एडिशन की कीमत 31 हजार रु. रखी गई है। कई दृष्टियों से विशिष्ट होने के कारण गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में इस ग्रन्थ के दर्ज होने की सम्भावना है.





Tuesday, 5 July 2016

सामाजिक कार्यक्रमों के प्रसारण में 80 लाख का सोशल नेटवर्किंग हासिल करने पर ज्योतिर्विद् महावीर सोनी का अभिनंदन

जयपुर। गठजोड़ परिवार द्वारा जल सरंक्षण, पर्यावरण सरंक्षण, सामाजिक समरसता, साम्प्रदायिक सदभाव, विश्व अहिंसा के क्षेत्रों उल्लेखनीय कार्य करने के साथ सामाजिक कार्यक्रमों के प्रसारण में सोशल नेटवर्क द्वारा 80 लाख लोगों के बीच पहुँचने का अभूतपूर्व नेटवर्क बनाने पर यहाँ गलता पीठाधीश्वर श्री स्वामी अवदेशाचार्य जी महाराज के मंगल सानिध्य में आयोजित कार्यक्रम में गठजोड़ के प्रधान संपादक महावीर कुमार सोनी का अभिनंदन किया गया, स्वामी जी द्वारा सोनी को सोशल मीडिया के साथ प्रिंट मीडिया के क्षेत्र में भी निरन्तर उन्न्नति करते हुए देश एवं समाज की इसी प्रकार और अधिक सेवा करते रहने का मंगल आशीर्वाद प्रदान किया गया।


Tuesday, 22 March 2016

जयपुर में दिनांक 7 एवम् 8 मई को होगा "अखिल भारतीय ज्योतिष, वास्तु एवम् रेकी महासम्मेलन"

जयपुर। इंटरनेशनल सेंटर फॉर ज्योतिष, वास्तु, स्पिरिचुअल एन्ड कल्चरल एक्टिविटीज ट्रस्ट की ओर से जयपुर में दिनाक 7 एवम् 8 मई को होने जा रहे 'अखिल भारतीय ज्योतिष एवम् वास्तु महासम्मेलन" को श्री श्री 1008 ब्रह्मपीठाधीश्वर संत श्री  नारायण दास जी महाराज का मंगल आशीर्वाद प्राप्त हुआ। सेमीनार के मुख्य समन्वयक ज्योतिर्विद् महावीर कुमार सोनी एवम् संयोजक आचार्य घनश्याम शर्मा ने इस अवसर पर श्री नारायण दास जी महाराज को बताया गया कि देश में पहली बार ज्योतिष, वास्तु एवम् रेकी के साथ भारतीय विद्याओं, मन्त्रों, प्रमुखत: वैदिक मंत्रो आदि के परिप्रेक्ष्य में सुख, शांति, समृद्धि बढ़ाने के साथ विश्व एवम् देश के सामने आने वाली चुनोतियों के समाधान पर इसमें वाचन होगा, इसके द्वारा इस प्रकार की  प्रमुख समस्याओं के निराकरण का मार्ग खोजने का प्रयास किया जावेगा।
 महाराज जी द्वारा इस सम्बन्ध में अत्यंत हर्ष व्यक्त किया गया, आयोजन के सफल होने का उन्होंने आशीर्वाद प्रदान किया।
सेमीनार की विषय वस्तु को लेकर तैयार किए गए प्रारंभिक पोस्टर के अवलोकन कराते हुए गण मान्य लोगों से चर्चा, परिचर्चा एवम परामर्श लेते हुए सेमीनार कार्यक्रम के प्रारम्भिक पोस्टर के साथ गति दी जा चुकी है।
कार्यक्रम संबंधी प्रारम्भिक पोस्टर के साथ यहाँ प्रस्तुत है प. पू. श्री नारायणदास जी महाराज, महामण्डलेश्वर बालमुकंदाचार्य जी महाराज, प्रख्यात ज्योतिष शास्त्री प्रो. विनोद शास्त्री सहित ज्योतिष एवं वास्तु विद्वानों के साथ कार्यक्रम को गति प्रदान करते हुए की कुछ झलकियाँ। सेमीनार से जुड़ने के लिए  मोबाइल नंबर: 9782560245 एवम् 9414240878 से अधिक जानकारी ली जा सकती है।


















Thursday, 10 December 2015

पर्यावरण को कैसे मिले बड़ी गति, अध्यात्म एवं ध्यान की सिद्धि के लिए भी भारत की प्राचीन पर्यावरणीय व्यवस्था को पुनः स्थापित करने को मूलभूत आवश्यकता मानते हुए पूरा करने पर शीघ्र ध्यान देने की आवश्यकता - ज्योतिर्विद महावीर कुमार सोनी

तमाम भौतिक सुख सुविधाओं के बावजूद आज मनुष्य अपने आपको अत्यंत अशांत महसूस कर रहा है, यूं कहना चाहिए कि  जैसे जैसे हमने भौतिक सुख साधन जुटाएं हैं, हमने हमारी मन की शान्ति खो दी है। कोई कहे कि मैं यह कैसे कह रहा हूँ कि मनुष्य अपने आपको अशांत महसूस कर रहा है, इसके जवाब में मेरा तर्क होगा कि आज जगह जगह ध्यान केंद्र चल रहे हैं, मेडिटेशन सेंटर चल रहे हैं, लोगों की बेतहाशा भीड़ उनमें अपनी शान्ति खोज कर रही है, यह इसी  बात का प्रमाण है।   विदेशी लोग जिस शांति को भारत की मंत्र, योग, प्रार्थना एवं विभिन्न आध्यात्मिक आहार विहार की साधनाओं एवं क्रियाओं द्वारा प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं हम विगत दशकों में इनसे दूर पर दूर हुए हैं ।  कई सालों से मेरा इस बारे में चिंतन मनन चलता रहा है,  मेरे मस्तिष्क में बहुत सारी बाते आती जाती रही है, नए नए विचार आए हैं, जिनके परिप्रेक्ष्य में  कुछ को मैं यहाँ शेयर करने जा रहा हूँ. हमारा भारत ध्यान एवं विशिष्ट विद्याओं का मुख्य केंद्र हुआ करता था, इसका एक मुख्य कारण हमारे ऋषि मुनि का ध्यान में तल्लीन हो जाना, ध्यान की सिद्धि प्राप्त हो जाना, जो अब दूर हो गई है। ध्यान की सिद्धि से त्रि -नेत्र खुलना सम्भव होना, टेलीपैथी जैसी योग्यताएं प्राप्त होना सम्भव था। ध्यान की सिद्धि के लिए जो वातावरण एवं परिस्थितियाँ  हमारे देश में ज्यादा रूप में सुलभ तरीके से उपलब्ध होती  थी वो अन्यत्र कम थी। हमारे देश की आध्यात्मिक व्यवस्था के अनुसार आयु के अंतिम वर्षों में संन्यास ले लेना या संन्यास के तुल्य जैसा जीवन बिताना शामिल था, अर्थात राग, द्वेष, मोह को बिलकुल छोड़ना या कम करना, आत्मा के कल्याण की तरफ ध्यान देना शामिल था, जो कि जंगलों एवं निर्जन पर्वतों पर ही सम्भव थी। भौतिक विकास करने की तरफ ध्यान देने में हम हमारी इस मूलभूत आवश्यकता को भूल से गए हैं। आज का मेरा यह लेख इसी मूल आवश्यकता को पूरा करने या कराने के तरफ ध्यान दिए जाने पर केंद्रित है, जिसको यदि पूरा किया जावे तो पर्यावरण सरंक्षण को तो बढ़ावा मिलेगा ही, साथ ही साथ पर्यावरणीय विषमताओं के कारण हो रही बीमारियों एवं विभिन्न कष्टों को रोकने की दिशा में भी गति सम्भव होगी। मेरे विचार से हम जिस नगर उप नगर में रहते हैं, उसके बाहर भी बड़े क्षेत्र को घेरे हुए इस तरह के जंगल होने चाहिए, जिनको यहाँ  जंगल तो विषय की स्पष्टता दर्शाने की दृष्टि से कहा जा रहा है, मेरा अभिप्राय: घने विशाल पेड़ पौधों, नदी नालों कंकर पत्थर युक्त  शिला आदि लिए हुए बड़े स्थान उपलब्ध होने से है, अर्थात जंगल जैसा दिखने वाला ऐसा वातावरण हो, जिसमें खतरनाक किस्म के जानवरों को छोड़कर सब तरह के जानवर (पशु - पक्षी)  भी जीवन यापन कर सकें। विभिन्न जाती - प्रजाति के पशु पक्षियों का पर्यावरणीय संतुलन बनाने में बड़ा योगदान होता है, इनका धीरे धीरे लुप्त हो जाना पर्यावरणीय विषमता को बढ़ाने का एक बहुत बड़ा कारण है। स्वन्त्रता सभी को प्रिय होती है, पशु पक्षी को भी स्वन्त्रता उतनी ही अच्छी लगती है जितनी हमें । हम इनको बन्धन में रखकर बचाना चाहते हैं, जो सम्भव नहीं है, किसी जाती -  प्रजाति को बंधन में रखते हुए हम बढ़ाना चाहें,  सम्भव नहीं है । आज सभी लुप्त होती जा रही पशुओं की विभिन्न प्रजातियों को बचाना चाहते हैं और बढ़ाना चाहते हैं  यह तभी सम्भव है जब हम इन्हें स्वन्त्रता पूर्वक विचरण करने वाला वातावरण दे सकें, तभी लुप्त होती जा रही प्रजातियों को बचाना सम्भव है, उक्त दृष्टि से भी उक्त पर्यावरणीय वातावरण बनाना आवश्यक है, यदि सम्भव बन सके तो ऐसे पर्यावरणीय वातावरण युक्त बड़े स्थान को सभी तरह की तरंगो, बिजली आदि के विभिन्न प्रभावों से मुक्त भी रखा जावे।      
आज के आधुनिक परिप्रेक्ष्य में मैं उक्त स्थान पर कोई जंगल स्थापित  होने की बात करूँ तो आपको बड़ी अटपटी या बेहूदी लगेगी, केवल विषय की स्पष्टता की दृष्टि से मैं यहाँ जंगल शब्द प्रयोंग कर रहा हूँ। यद्यपि हमारी सरकार का ध्यान पर्यावरण संतुलन को लेकर विगत वर्षों में काफी गया है जिसके तहत हर कॉलोनी में आज बगीचे अनिवार्य रूप से बनाए जा रहे हैं, मेरा मानना है यह पर्याप्त नहीं है, हमारे विभिन्न कष्टों एवं बीमारियों का निवारण करने के लिए हमें हमारी कुछ पुरानी व्यवस्थाओं में आधुनिक परिस्थितियों से तालमेल बैठाते हुए लौटना होगा। मेरे चिंतन में स्पष्टत:  यह बात आई है कि विभिन्न तरह के जाति प्रजाति के पशु पक्षी पर्यावरणीय संतुलन को बनाने का काम करते हैं, नदी का जो पानी पेड़ पौधों पर गुजरते हुए विभिन्न तरह के कंकर पत्थरों से टकराते हुए पीने के काम आता था, वो विशेष शक्ति युक्त हुआ करता था, इन सब का हमने अभाव ही कर ही दिया है।  हम ध्यान की सिद्धि चाहते हैं वो ऐसे शांत वातावरण में ही सम्भव है, जहाँ टेलीफोन, मोबाइल, टी वी आदि की तरंगो का अभाव हो,  जहाँ पूर्णतः प्राकृतिक वातावरण हो, जहाँ शान्ति हो, उसी वातावरण में ध्यान आदि की  सिद्धि सम्भव है, हमने बिना सोचे समझे बेतहाशा रूप में जंगल के जंगल काट दिए, वो जंगल, खेत अब वापिस नहीं ला जा सकते और न ही आज के चकाचौंध भरे वातावरण मेरी मांग का कोई समर्थन करने आगे आएगा। जब एक तरफ दूर दूर तक आवासीय  कालोनियां  बसाई जा रही है, शहर के बाहर की जगह की कीमतें करोड़ों को छू रही है, मेरी बात बहुतों को हास्यापद ही लगेगी, किन्तु मैं फिर भी अपना चिंतन सामने रख रहा हूँ, मैं मेरे उक्त विचार को आज की सबसे मूल भूत आवश्यकता के रूप में  सामने रख रहा हूँ। एक समय था जब आदमी अशांति महसूस करता था या उसे वैराग्य हो जाता था, उसको संन्यास की आवश्यकता महसूस होती तो  वो वन को गमन कर जाता था। आज वन नहीं है, बाग़ बगीचें भी आसपास बना दो तो भी ध्यान एवं समाधि का वन जैसा वातावरण वे नहीं दे सकते, जिसके कि अभाव में हमारे ऋषि मुनि वो सिद्धियां या आश्चर्यजनक बातें सामने लाने में सामर्थ्यशील भी नहीं हो सकते, हमारे आसपास विचारों के साथ विभिन्न तरह तरंगो का व्यापक जाल है, प्रदूषित वातावरण है, जिसमें ध्यान की पूर्ण सिद्धि सम्भव नहीं है। हमारे आध्यात्मिक गुरु जन पहले जैसी ऋद्धियाँ प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं, उनमें यह भी एक बड़ा कारण है, जिसमें वन जैसी  उपयुक्त जगह का अभाव होना है। हम जो पर्यावरण को गति दे रहे हैं वह पर्याप्त नहीं है, सृष्टि की रक्षा, पर्यावरणीय संतुलन के लिए उक्त बातों पर विचार आज पहली बड़ी जरुरत होनी चाहिए। विषम होते जा रहे वातावरण में पर्यावरण सरंक्षण को सबसे बड़ा कर्त्तव्य घोषित किया जाना चाहिए, उक्त के अलावा भी जहाँ भी सम्भव हो पर्यावरण बढ़ाने से सम्बंधित कार्य करने वाले को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। हमने देखा है कि विदेशी राष्ट्रों में हमारी विद्याओं/आध्यात्मिक शक्तियों की तरफ समय समय पर ध्यान गया है, उनमे इन सबको लेकर शोध एवं अनुसंधान की तरफ विशेष जिज्ञासा है और तुरंत पहल करने की रूचि भी है, वे उक्त  दिशा में पहले पहल करें, इससे पूर्व हमें इस दिशा में पहल करनी चाहिए,क्योंकि एक इस तरफ बड़ी पहल करने पर पर्यावरण को ज्यादा शीघ्रता से बढ़ा पाएंगे, पशु पक्षी की विभिन्न जाति - प्रजाति को सरंक्षित करने की दिशा में आगे बढ़ते हुए इनके द्वारा होने वाले पर्यावरणीय संतुलन को स्थापित करने में गति कर पाएंगे, हमारे भारतीय जीवन का  जो एक मूलभूत तत्व या उद्देश्य है जिसके तहत हम या हमारे ऋषि मुनि ध्यान साधना के लिए कोई उपयुक्त स्थान/वातावरण पा सकें, उसको पूरा करने में सफल हो पाएंगे। इसके अलावा अनगिनत प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष  ऐसे विभिन्न लाभ जिनसे हम सब में से प्राय :कर सब वाकिफ हैं, को पाने के दिशा में गति  दे पाएंगे।
   
नोट: यह लेख महावीर  कुमार सोनी के चिंतन मनन पर आधारित उनका मूल लेख है, आप इसे कहीं भी पुनः प्रकाशित कर सकते है, बेबसाइट, बेब पोर्टल आदि में दे सकते हैं, किन्तु देते समय लेखक का नाम आवश्यक रूप से दें. पसंद आया हो तो पर्यावरणीय हित में ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।